Monday, August 8, 2016

गुरु जसनाथ जी महाराज जी का जन्म [ Shri Jasanath Ji Ka Janam]

गुरु जसनाथ जी महाराज जी का जन्म जाट जाति के ज्यानी में गोत्र हमीरीजी ज्यानी के घर कतियासर गाँव बीकानेर 1482 में को हुआ था. सिद्घाचार्य जसनाथजी छोटेथे तब उनकी सगाई हरियाणा राज्य के चूड़ीखेडा़ गांव के निवासी नेपालजी बेनीवाल की कन्या काळलदेजी के साथ हुई. काळलदेजी सती और भगवती का अवतार मानी जाती है. कुछ जगह उनको हमीरीजी ज्यानी को जंगल में मिला हुआ भी लिखते है.

how jasanath ji born
जाटो के जसनाथी सम्प्रदाय की नीव जसनाथ जी ने रखी. 36 जिनके नियम है. उनके अनुयाई लोग गले में काली ऊन डोर धारण करते है. *सिद्घाचार्य जसनाथजी के रूप में उनके अवतार लेने का एक निमित्त यह बताया जाता है कि कतरियासर गांव के आधिपति हमीरजी जाणी ने सत्ययुगादि में तपस्या की थी. उसी के वरदान की अनुपालना में भगवान कतरियासर गांव से उत्तर दिशा में स्थित डाभला तालाब के पास बालक के रूप में प्रकट हुए.
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               श्री जसनाथ जी महाराज के 36 नियम
भगवान ने जसनाथजी के रूप में अवतार लेने के उपरान्त हमीरजी जाणी के घर के पुत्र रूप में निवास किया. ये बाल्यकाल से ही चमत्कारी थे. जब वे छोटे थे तो अंगारों से भरी अंगीठी में बैठ गए. माता रूपांदे ने घबराकर जब उन्हें बाहर निकाला तो वे यह देखकर दंग रह गई कि बालक के शरीर में जलने का कोई निशान तक नहीं है. मानो वे स्वयं वैश्वानर हों. अग्नि का उन पर कोई असर नहीं हुआ. धधकते अंगारों पर अग्नि नृत्य करना आज भी जसनाथी सम्प्रदाय के सिद्घों की आश्चर्यजनक क्रिया है,



पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर शहर 45 से किलोमीटर दूर स्थित सोनलिया धोरों की धरती कतरियासर गांव अंतर्राष्ट्रीय ऊंट उत्सव के अग्रि नृत्य से विश्वविख्यात है जहां जसनाथजी का मुख्य धाम है, जबकि बम्बलू, लिखमादेसर, पूनरासर एवं पांचला में इनके बड़े धाम हैं. इनके अलावा कई स्थानों पर जसनाथजी की बाड़ी उपासना स्थल व अन्य अनेक स्थानों पर आसन और मन्दिर बने हुए हैं. इन्होंने जसनाथजी सम्प्रदाय की स्थापना की. जसनाथी सम्प्रदाय का विधिवत प्रवर्तन वि 1561 संवत् में रामूजी सारण को छतीस धर्म - नियमों के पालन की प्रतीज्ञा करवाने पर हुआ. रामूजी सारण का विधिववत दीक्षा - संस्कार स्वयं सिद्घाचार्य जसनाथजी ने सम्पन्न करवाया था.

एक अन्य चमत्कार के अनुसार बालक जसवंत ने नमक को मिट्टी में परिवर्तित किया. कतरियासर गांव में नमक के बोरे लेकर आए व्यापारियों ने विनोद में बालक जसवंत से कहा देखो जसवन्त इन बोरों में मिट्टी भरी है. यदि चखने की इच्छा हो तो एक डली तुम्हें दें. तब इन्होंने प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करते हुए कहा मिट्टी तो बड़ी स्वादिष्ट और मीठी है. इस प्रकार सारा नमक मिट्टी में परिवर्तित हो गया. इस प्रकार के अनेक चमत्कार जसनाथजी के बाल्य जीवन से जुडे़ हुए हैं. इनके चमत्कारों और तपोबल की ख्याति सुनकर ही इनके समकालीन विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरू जंभेश्वर महाराज, बीकानेर राज्य के लूणकरण और घड़सीजी, दिल्ली का शाह सिकंदर लोदी इत्यादि इनसे मिलने कतरियासर धाम आए थे. जसनाथजी महाराज ने समाधि लेते समय हरोजी को धर्म (सम्प्रदाय) के प्रचार, धर्मपीठ की स्थापना करने की आज्ञा दी. सती कालो की बहन प्यारल देवी को मालासरभेजा.

 संवत 1551 में जसनाथजी ने चुरू में जसनाथ संप्रदाय की स्थापना कर दी थी. दस वर्ष पश्चात 1561 संवत में लालदेसर गाँव (बीकानेर) के चौधरी रामू सारण ने प्रथम उपदेश लिया. उन्हें 36 धर्मों की आंकड़ी नियमावली सुनाई, चुलू दी और उनके धागा बांधा.
इस संप्रदाय में तीन वर्ग हैं -
1. सिद्ध.
२. सेवक
3. साधू
*संप्रदाय का एक कुलगुरु होता है. सिद्धों की दीक्षा सिद्ध गुरु द्वारा दी जाती है. कुलगुरु का कार्य संप्रदाय को व्यवस्थित रखना है. जसनाथ संप्रदाय में पाँच महंतों की परम्परा है. कतरियासर, बंगालू (चुरू) लिखमादेसर, पुनरासर एवं पांचला (मारवाड़) और बालिलिसर गाँव (बाड़मेर) यानि बीकानेर में चार और बाड़मेर में एक गद्दी है.
इन पाँच गद्दियों के 5 बाद धाम, 12 फ़िर धाम, 84 और बाड़ी, 1o8 स्थापनाएँ और शेष भावनाएँ. इस प्रकार इस संप्रदाय का संगठन गाँवों तक फैला है.

जसनाथ सिद्धों का प्रारम्भ वाम मार्गी एवं भ्रष्ट तांत्रिकों के विरोध में हुआ था. सामान्य जनता शराब, मांस एवं उन्मुक्त वातावरण की और तेजी से बढ़ रही थी उस समयराजस्थान में जसनाथ संप्रदाय ने इस आंधी को रोका. भोगवादी प्रवृति को रोकने एवं निर्माण चरित्र के उद्देश्य से लोगों को आकर्षित किया और अग्नि नृत्य का प्रचलन कराया. इससे लोग एकत्रित होते थे, प्रभावित होते थे, जसनाथ जी उनको उपदेश देते थे. इस प्रकार उनके सद्विचारों का जनता पर काफ़ी प्रभाव पड़ा. बाद में अग्नि नृत्य इस संप्रदाय का प्रचार मध्यम बन गया. इस संप्रदाय के लोग पुरूष पगड़ी (भगवां रंग) बांधते हैं और स्त्रियाँ छींट का घाघरा पहनती हैं. इनके मुख्य नियम है - प्रतिदिन स्नान के बाद बाड़ी में ज्वार, बाजरा, मोठ आदि दाने पक्षियों को डालना, पशुओं को पानी पिलाना, दस दिन का सूतक पालना, देवी देवताओं की उपासना वर्जित है. मुर्दा को जमीन में गाड़ते हैं. बाड़ी में स्थित कब्रिस्थान में ही मुर्दे गाडे़ जाते हैं और समाधि बनादी जाती है.

*इनके तीन मुख्य पर्व हैं
1. जसनाथ जी द्वारा समाधि लेने के दिन यानि जसनाथ जी का निर्वाण पर्व आश्विन शुक्ला सप्तमी को मनाया जाता है.
2. माघ शुक्ला सप्तमी को जसनाथ जी के शिष्य हांसूजी में जसनाथ जी को ज्योति प्रकट होने की स्मृति में मनाते हैं.
3. चैत में दो पर्व - सुदी चैत्र चौथ को सती जी का और तीन दिन बाद सप्तमी को जसनाथ जी का पर्व मनाया जाता है.
सिद्ध लोग कतरियासर में सती के दर्शन करने छठ को आते हैं और रात को जागरण के पश्चात सप्तमी को वापिस चले जाते हैं. मलानी की और से आने वाले जाट सिद्ध एवं अन्य सेवक ठहर जाते हैं. और सप्तमी का पर्व वहीं मानते हैं. अन्य पर्व सभी अपने - अपन्व गावों में एक दिन पूर्व जागरण करते है. यह अग्नि नृत्य के समय नगाड़ों एवं मजिरों की ध्वनि के सात भजन गाते हैं. एक प्रकार से यह सम्प्रदाय मुख्यतः जाटों का ही है.

14 comments:

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  2. जसनाथजी महाराज जय हो

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  3. Jai shit jasnath ji maharaja Ki jai ho

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  4. Sir jb gyan adhura ho na to post nhi krni chahiy
    Main dam panchla kb se hua

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  5. Jai GURU shree jasnath ji Maharaj

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